अर्थव्यवस्था के मजबूत स्तंभ ( व्यंग्य )
*********लम्बी —– लम्बी लाइनें । सबके चेहरे पर एक सुकून और आशा का संचार होता दिख रहा है । हालांकि सबके चेहरे ढंके हुए हैं लेकिन आंखें हैं कि सब बयां कर रही हैं । कई दिनों के बाद आखिर वो घड़ी आ ही गई । जिसका सब बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । इंतजार करने वाले कोई ऐसे वैसे या ऐरा गैरा लोग नहीं थे । इंतजार कर्ता थे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत
करने वाले वे लोग जो अपने खून पसीने की कमाई से भारतीय अर्थव्यवस्था को संभाले हुए हैं , जिन्हें कुछ नादान लोग , शराबी ,
पियक्कड़ , बेबड़े और जाने क्या – क्या कहते हैं । पर मैं उन्हें
मैकश या फिर मैख़्वार कहता हूं । थोड़ा अच्छा लगता है ,आखिर
वे अर्थव्यवस्था के कर्णधार जो हैं । तभी तो सरकार ने भी उन्हें निराश नहीं किया और लाकडाउन खुले न खुले , उनके योगदान को पूरा महत्त्व देते हुए बड़ी शिद्दत से शराब की दुकानें ज़रूर खोल दी । धन्य ऐसे अर्थव्यवस्था के कर्णधार और धन्य – धन्य सरकार ! जय हो ! जय हो ! चलो फिर ज़रा मैख़्वारों की लम्बी लाइन के करीब चलते हैं । कोई ख़बरनवीस बेतकल्लुफी से एक
मैकश के पास पहुंचता है । वार्तालाप शुरू होता है –
” आप कबसे खड़े हैं । ”
” सुबह 6 बजे से । ” ( जबकि दुकान 8 बजे खुलने वाली है )
” सुना है सरकार ने शराब के दाम बढ़ा दिए हैं ,आपको पता है । ”
” हां , 70 फीसदी बढ़ गए हैं । ”
” आपको बढ़े दाम से कोई दिक्कत ।”
” नहीं , कोई दिक्कत नहीं है । ”
जिस पर अर्थव्यवस्था की महती जिम्मेदारी हो और जिस पर सरकार भी पूरा भरोसा करती हो , भला वह बढ़े दामों से कैसे
दिक्कत महसूस करता । किसी चीज पर रुपए दो रुपए बढ़ने पर
हो-हल्ला मचाने वाला , दारू की बेतहाशा बढ़ोतरी को चुपचाप सह गया । चूं चपट तक न की । सच्चा देशभक्त , अर्थव्यवस्था का सच्चा कर्णधार ऐसा ही होता है । एक अच्छी परंपरा याद आ रही है ,जब साल के शुरुआत में छोटे-छोटे नौनिहालों का स्कूल के खुलते ही उनका तिलक लगाकर और फूलों से स्वागत किया जाता है क्या अच्छा होता कि देश की अर्थव्यवस्था को संभालने वाले को भी ऐसे ही सम्मानित किया जाता । पर बेबड़े कहलाने वालों का सम्मान कौन करे । चलिए जब स़ाकी खुश मैकश खुश और मैकदा गुलज़ार हो तो तीसरा कौन होता है दख़ल देने वाला ।
मैख़ाना अच्छा, अच्छा मैकश और भली मैख़्वारी भी ।
साक़ी भी पुरसुकून है और भली है उसकी यारी भी ।।
अशोक सोनी
भिलाई ।