अर्चना की वेदियां
अर्चना की वेदियां हैं
और निमंत्रण हजारों
जाऊं कहाँ न जाऊं
प्रश्न हैं सब बिखरे पड़े।।
रस्मी सभी तो हो गये
मण्डप, दूल्हा, बाराती
शगुन का लिफाफा है
बस परंपरा का आदी
खाऊँ कहाँ न खाऊँ
प्रश्न है सब बिखरे पड़े।
कोई भी यहाँ नहीं है
सब अपने में हैं खोये
कौन आया कौन गया
ज्यूँ बीज से पौध रोये
पाँव पर पहरे लगाऊं
प्रश्न हैं सब बिखरे हुए।।
भूल संस्कार सब बैठे
आये यहाँ हम किसलिए
निमित जिसके उपक्रम है
वही यहाँ ठुमके लगाये
क्या बताऊँ, क्या सुनाऊं
प्रश्न हैं सब बिखरे पड़े।।
सूर्यकांत