अरे पगली, जरा मुस्कुरा ले….
१-अरे पगली जरा मुस्कुरा ले…
अश्क पलकों में छुपा ले
अरे पगली ! जरा मुस्कुरा ले
गम भेजे सौगात में उसने
प्यार से उनको गले लगा ले
जिसकी खातिर भूली खुद को
कुछ तो उसके नाज उठा ले
फिर पो ले मुक्ताहार खंडित
फिर रूठा मनमीत मना ले
जाग न जाए पीर है सोई
कर अँधेरा चिलमन गिरा ले
लगे उसे न नज़र किसी की
मन- कोटर में अपने छुपा ले
चुन यादें बुन बसन सजीला
यूँ अपनी मन- देह सजा ले
रिदय के सूने नील-निलय में
यादों की एक बस्ती बसा ले
भभक रही है लौ आख़िरी
आज बुझे सब दीप जला ले
देख तो पौ फटने को आई
दो घड़ी अब आँख लगा ले
चाहतों का ओर न छोर कोई
तू अपनी एक ‘सीमा’ बना ले
बिखरे ख़नक फिज़ां में तेरी
हँसते- हँसाते जग से विदा ले
– डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“मृगतृषा” से