अरे ग्राम देवताओं शुभाशीष दो
अविचल, अशेष, अवशेष से खडे़,
निर्जन, श्मशान, क्षेत्रों में अडे़;
जंगम, प्रस्तरों पर करे निवास,
पीपर, आम तले हुआ अधिवास;
तुम ही सर्वश्रेष्ठ अरु मनीष हो,
अरे ग्राम देवताओं शुभाशीष दो।
हे क्षेत्रपाल! तुम अडिग हो,
हे अभय! तुम निर्भीक हो,
पथ से विमुख मनुज की राह हो,
हर क्लांत मन की आह हो;
हम नरों को कोई भली सीख दो,
अरे ग्राम देवताओं शुभाशीष दो।
नीरवता कभी तुम्हें सताती नहीं,
ग्रामवधु पूज तुम्हें अघाती नहीं;
अकाट्य है वार न होती चूक कोई,
मिटे विकलता बन उठे जो हूक कोई;
मिटे भाव वैर के आशीष दो,
अरे ग्राम देवताओं शुभाशीष दो।
दिन विशेष पर हे कुलीन तुम सजे,
ढोल, मजीरे और पिपही बजे;
हो जय हे सती, शीतला माई,
हो जय हे काली व बंदी माई;
वर हमें कोई अहो! अभीष्ट दो,
अरे ग्राम देवताओं शुभाशीष दो।
हे तेजा जी माथा तेरो चरण में,
हे गोगा जी भगत तेरो शरण में;
हे गहिल, हे मुड़ि़या बाबा लाज रख,
हे सल्हेस, गोरैया बाबा शीश हाथ रख;
हे बाबोसा, खाटू वाले तुम ही अधीष* हो,
अरे ग्राम देवताओं शुभाशीष दो।
संस्कारों को जो समेटे हुए,
परंपराओं को जो सहेजे हुए;
पर बने न ये कभी पाँव की बेडि़या,
न विस्तृत हो अंधविश्वास की हथेलियाँ;
ऐसा हे कुल देवता शीष दो,
अरे ग्राम देवताओं शुभाशीष दो।
सोनू हंस