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10 Mar 2019 · 1 min read

अरे ! आदमी बदल रहा है..

अरे ! आदमी , बदल रहा है
जो जैसा चाहे , चल रहा है
फुर्सत नहीं है एक पल की
वो व्यस्तताओं में पल रहा है
मरीज होकर भी मर्ज देखे
खुद यूँ ही खुदको छल रहा है
अपनी सेहत दुरुस्त करने
पराया हक़ भी निगल रहा है
सब रिश्ते नाते भुला के बैठा
अकेलापन भी खल रहा है
सहन न होती खुशी किसी की
ईर्ष्या की अग्नि में जल रहा है
इंसानियत का महा हिमालय
धीरे धीरे पिघल रहा है

Language: Hindi
1 Like · 211 Views
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