अरे,ग़रीबी !
सदियों से ग़रीबी और अमीरी के बीच खाई पाटने की कोशिश की जा रही है पर इसमें सफलता नहीं मिल पाई।ग़रीब और ग़रीबी हाथ में हाथ थामे अब तक शायद न जाने कब तक यूँ ही चलते रहेंगे:-
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अरे,ग़रीबी !
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अरे,ग़रीबी
मिटी नहीं तुम
खूब तनी सी
बनी ठनी सी
अभी वहीं खड़ी हो
अभी तक वही दरवाज़े पर टाट
टाट पर छेद
छेद पर पैबंद
वही सीमेंट की चादर
वही टपकती झोपड़ी
वही अंदर टूटी खाट
ठिठुरती गूदड़ी
गूदड़ी में लाल/बेहाल
छ: जोड़ी आंख
रात का अंधेरा
आश्वासन देता चेहरा
संतोष का पहरा
समय के पंख
अमीरी से जंग
सब यथावत है
स्कूल का थैला
चेहरा मटमैला
सरकार की नीति
नेताओं की राजनीति
लाला की ज़लालत
सामने वाले झोंपड़े से
बूढ़े की खांसी
स्कूल से लौटती लड़की की
रेप के बाद फांसी
चलती मोमबत्तियाँ
अंतिम सांस लेती लालटेन
माँ की सुबकती आस
बाप की गिरी पगड़ी
धुंए से घुटती सांस
सब यथावत है
लंगर की पूरी
शादी वाला साग
फटा सा स्वैटर
मंदिर वाला कंबल
राशन के चावल
ग़रीबी वाली पैंशन
आधार से जुड़ी प्यास
हवाई सर्वेक्षण में तेज़ है विकास
ग़रीबी भी, ग़रीब भी
सब यथावत है !!!!!
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राजेश”ललित”शर्मा
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