अरुण ! तुम क्यों चले गए ( कविता) { पूर्व वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी की स्मृति में ॥}
अभी अभी तो देश जागा था ,
और लेने लगा था अंगड़ाई ।
विकास के आयामों को छूने को ,
सारे विश्व में पैठ अपनी जमाई ।
उसी पथ फिर अंधेरा कर बोलो अरुण !
तुम यों चले गए ?
अभी तो बहुत ज़रूरत थी तुम्हारी ,
अभी कितनी और उम्मीदें थी तुमसे ।
देश की अर्थव्यवस्था की मजबूत करने ,
हेतु बड़ी -बड़ी आशाएँ थी तुमसे ।
फिर इस तरह मझधार में छोड़ कर ,
बोलो अरुण तुम क्यों चले गए ?
हमारे प्रधानमंत्री जी का दाहिना हाथ थे तुम ,
उनके परम मित्र,हमराज़ ,और सहयोगी ।
हजारों मित्र हो बेशक उनके आस-पास ,
मगर तुम्हारी कमी कैसे पूरी होगी ?
जीवन पथ पर साथ चलते -चलते ,
उन्हें तन्हा बोलो अरुण तुम क्यों छोड़ गए ?
सिर्फ कुशल राजनेता ही नहीं,
तुम थे कुशल वक्ता भी ।
हे बहू-मुखी प्रतिभा के स्वामी !
तुम थे जन-जन के अधिनायक भी ।
विरोधियों के दिलों को जीतने वाले अजात शत्रु ,
अरुण तुम क्यों चले गए ?
तुम्हारी देश भक्ति पर देश को नाज़ था ,
तुम्हारे बेदाग साफ ,सुंदर आला दर्जे की शख्सियत पर ,
हर देशवासी को नाज़ था ।
हे भारत माता के प्यारे लाल !
यह प्रकृति भी रोई थी ज़ार-ज़ार तुम्हारी मौत पर ।
सारी कायनात को आंसुओं में डुबोकर बोलो अरुण !
तुम क्यों चले गए ?