अरुणोदय
यामिनी की कोख से
प्रसव होने को है
तैयार है दाई उषा
खुल चुका है, गर्भ का द्वार
बहने लगा है
रक्तिम प्रकाश
नवजात शिशु (अरुण) का
मोहक गुलाबी तन
देख पुलकित है दिशाएँ
पक्षियों ने गाए मंगल गान
बागों ने चटकाई कलियाँ
सूरजमुखी मुस्काया
पवन भी लहराई
वृक्षों ने बजाई बीन
पर्वत ने उसे काँधे पर बिठाया
फिर निर्झर की फिसलपट्टी
से खिल-खिल फिसल आया
धूमिल सी निर्झरिणी
झिलमिल सी हो उठी
शिशु दिनकर को गोद ले
झूला झुलाया ।
धरती की दुनिया भी आँख खोलने लगी
वृक्षों पर बुलबुल भी पाँख तौलने लगी
दिनकर का तेज देख काल-रात्रि भागी
नव उमंग, नव स्फूर्ति जन-जन में जागी।
डॉ. मंजु सिंह गुप्ता