अरमान
चल अब छोड़ रहा हूँ
चाँद तुझे तांकना हर रोज़
निहारना चाहतों की नजरो से
और ख्वाबो में अपना बनाना
ऐसा मत समझना ए जमीं के टुकड़े
कि चुन लिया है किसी को नया हमसफ़र
या तुझमे आंक लिए हो दाग हमनें ।
बात इतनी सी है, बस
हकीकत समझीं जा रही है
तू कितनी दूर है इन आँखों से
दूरीयां निकाली जा रही है
या कितना है तू नाचीज़ हमसे
तोली तेरे ख़ूबसूरती जा रही है
तू घिरा है, लाखों तारो से
उनकी रोशनी में मगन होगा
अँधेरी सड़को से निहारता मैं तुझको
नहीं दिखूंगा कभी शायद
अरमान का क्या है,
वो तो अभी पंख मांगने लगे
कहने लगे चल उड़ चलते हैं, आसमान में
उन्मुक्त गगन की उंचाई में
तो क्या फिर मैं हाथों को लहरा-लहरा कर
उड़ने की कोशिश में लग जाउ…
अरमान को अरमान ही रहने दो
ख्वाब नींदो तक ही ठीक है
चांद तारो के बीच…ही अच्छा है
और जुगनू अपनी इन अंधेरी गलियों में
27/02/24