*बुखार ही तो है (हास्य व्यंग्य)*
आज का इंसान खुद के दुख से नहीं
कुछ हसरतें पाल कर भी शाम उदास रहा करती है,
जिस्म से जान जैसे जुदा हो रही है...
सुबह की चाय हम सभी पीते हैं
For a thought, you're eternity
बेशक मैं उसका और मेरा वो कर्जदार था
हम जानते हैं - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
संवेदना - अपनी ऑंखों से देखा है
वो प्यासा इक पनघट देखा..!!
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
दो अनजाने मिलते हैं, संग-संग मिलकर चलते हैं
अमर शहीदों के चरणों में, कोटि-कोटि प्रणाम