अरमान
उन्वान – ” अरमान ”
मिरे अरमानों को फ़िर क्यूँ हवा दी तुमने ।
इज़हार ए मुहब्बत में देर लगा दी तुमने ।।
मिरी तस्वीर… तुम्हारे हाथों में थी यारां ।
जलाकर क्यूँ उसे ख़ुद को सज़ा दी तुमने ।।
कुछ राज़ ज़रूरी थे…. मुहब्बत में लेकिन ।
बातें वही राज़ की… सबको बता दी तुमने ।।
तवील सफ़र है चाहत और ए’तिमाद का ये ।
निशानियां रास्तों की ख़ुद ही मिटा दी तुमने ।।
“वासिफ़” सुनाना चाहते थे दास्तां ज़माने को ।
ख़बर ये अफ़वाह……………..बना दी तुमने ।।
©डॉ वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की कलम