अरमान
अरमान भरे
इन्तजार भरे
खुशियों भरे
होते है वह दिन
शादी के बाद
जब सुनती बहुरिया
गोद भरी है उसकी
सहती नौ महिने
कष्ट अनेक
पल रही संतान
गर्भ में
रीति रिवाज
उम्मीदों में
कट जाता
समय अविरल
चलता जब
ठुमुक ठुमक कर
बोलता जब
तुतलाकर वो
सारे जहां की
खुशियां होती
मुट्ठी में
गुजर जाते
दिन पंख लगाकर
बुढापे में
देगी साथ
औलाद
छिन्न-भिन्न
हो जाते सपने
जब औलाद
छोड़ जाती
असहाय
माँ बाप को
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल