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29 Nov 2016 · 1 min read

अय हमसुखन वफ़ा का तक़ाज़ा है अब यही

अय हमसुखन वफ़ा का तक़ाज़ा है अब यही
मैं छोड़ दूं तेरा शहर जो तू कहे गली

क्यूंकर यकीन आये मुहब्बत का हमनशीं
कोई खिला ना फूल ना दिल की मिरे कली

निकलेगी बन के आग बरसेगी बन घटा
दिल की तमाम ख्वाहिशें जो यूँ की यूँ दबी

रुदाद-ए-मुहब्बत कौन सुनने मेरी रुका
दुनियाँ में जितने लोग हैं सब के सब बिज़ी

होता है यूँ गुमान क़दम-क़दम ए हमसफ़र
रस्ता है मेरा अब यही मंज़िल है यही

शादी के वक़्त आजकल कहते हैं सब यही
मैं इस तरहा से और तू उस तरहा से जी

अब जान गये हम ये निशाना है तीर पर
अंधेरों को ‘सरु’चाहिए किस्मत की रोशनी

1 Comment · 377 Views
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