” अम्माँ मुझे पता है……..”
अम्माँ मुझे पता है…
तुम जाकर बाबू को खूब उलाहने दे रही होगी
सढ़सठ साल का साथ फिर से जी रही होगी ,
अम्माँ मुझे पता है…
तुम वहाँ भी काव्य गोष्ठी कर रही होगी
अपनी काव्य रचनाएं मन से पढ़ रही होगी ,
अम्माँ मुझे पता है….
तुम जब बाबू के लिए खाना पका रही होगी
खाने की खुशबू वहाँ हलचल मचा रही होगी ,
अम्माँ मुझे पता है….
वहाँ किसी की मनमानी नही चल रही होगी
तुम्हारे नियम से तो अप्सरा भी डर रही होगी ,
अम्माँ मुझे पता है….
तुम्हारे हौसले की वहाँ दाद दी जा रही होगी
रति इंद्र को तुमसे सीखने को कह रही होगी ,
अम्माँ मुझे पता है….
कर्म की प्रधानता का तुम प्रमाण बन रही होगी
मेहनत करके तुम वहाँ प्रधान बन रही होगी ,
अम्माँ मुझे पता है….
खुद के मापदंडों पर स्वर्ग को बदल रही होगी
कभी उम्मीद ना रखने की सलाह दे रही होगी ।
अम्माँ मुझे पता है….
तुम वहाँ से भी हमारी ही चिंता कर रही होगी
हमें कोई तकलीफ ना हो यही सोच रही होगी ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/07/2021 )