अम्बे का जयकारा
सारे जग की जननी को है, अर्पित नमन हमारा।
जी करता है आज लगाऊं, अम्बे का जयकारा।।
माॅं से अधिक न कोई जाने, क्या शिशु की अभिलाषा।
माॅं ही पूरी कर सकती है, हम शिशुओं की आशा।।
सन्तानों को माॅं से बढ़कर, भला कौन है प्यारा।
जी करता है आज लगाऊं, अम्बे का जयकारा।।
केवल जन्म नहीं देती माॅं, लालन-पालन करती।
प्राण निछावर करके भी वह, शिशु की पीड़ा हरती।।
जब-जब संकट आता तब-तब, देती हमें सहारा।
जी करता है आज लगाऊं, अम्बे का जयकारा।।
हर माॅं अपने त्याग के लिए, जग में जानी जाती।
अपनी सन्तानों के संकट, प्रतिपल परे हटाती।।
अपनी सन्तति के वैरी को, आगे बढ़ ललकारा।
जी करता है आज लगाऊं, अम्बे का जयकारा।।
माॅं के चरणों में जन्नत है, धर्मशास्त्र बतलाते।
जो माॅं के आराधक साधक, जग में सुयश कमाते।।
माॅं की सेवा को सर्वोपरि, गया सदा स्वीकारा।
जी करता है आज लगाऊं, अम्बे का जयकारा।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी