अम्बर पुकारे
गतिशील रहना धरती सिखाये
निस्वार्थ सेवा सूरज सिखाये
चलती है दुनियाँ इन्हीं के सहारे |
न सोता है सूरज न थमती है धरती
दोनों के तप से धरा है सरसती
अष्टभुज ऋतु चक्र इनको संवारे |
मानव की मंशा प्रकृति को झुकाए
कम करे मेहनत अधिकतम कमाए
निसर्ग का दोहन कोई न निहारे |
प्रदूषण बढ़े हैं जलवायु, ध्वनि के
सभी पथ रुके हैं शुद्धिकरण के
त्राहि माम्…त्राहि माम अम्बर पुकारे