*अम्बर पर छाने की धुन*
अम्बर पर छाने की धुन में बदले परिभाषा
पूरी होती उसके मन की हर इक अभिलाषा
परम्परा के धागों में जो फ़ंसता ना कभी
जग को राह वही दिखलाता करता दूर निराशा
धर्मेन्द्र अरोड़ा
अम्बर पर छाने की धुन में बदले परिभाषा
पूरी होती उसके मन की हर इक अभिलाषा
परम्परा के धागों में जो फ़ंसता ना कभी
जग को राह वही दिखलाता करता दूर निराशा
धर्मेन्द्र अरोड़ा