अमृतकलश
संसार में
पदार्पण के पूर्व ही
पय से परिपूर्ण
अमृतकलशो का उपहार
परमात्मा ने हमें दिया
उपरांत इसके भी
उसके ऊपर अविश्वास
करने का
कोई कारण है क्या ?
मां ने बड़े ही
अनुरक्त भाव से
वात्सल्य को समेटा
उन अमृत कलशों को
मेरे लिए उड़ेला
घंटों अपनी गोद में बैठा
कर बलैया लिया।
उन अमृतकलशों से
जी भर कर खेला
कभी ऐसी कोई ऐसा
विभाव मन में नहीं आया।
दशकों बीत चले
अचानक से मै बड़ा
होता गया
उन अमृतकलशों के प्रति
दृष्टि बदलता गया।
अब वे मुझे आकर्षित
करने लगे
पहले मां के अलावा
किसी और के अमृतकलशों
से डरते थे
आज उलट वही हमें
अच्छे लगने लगे थे।
पर साथ ही साथ शील
और संकोच का प्रादुर्भाव
भी होता रहा
सद्गुणों से संपन्न एक
व्यक्तित्व का विकास
मुझमे होता गया।
अफ़सोस कुछ लोगो को
इससे इतर मैंने
उन अमृतकलशों पर
वासना के अतिरेक भाव में
आक्रमण करते हुए देखा
यत्र नार्यस्त पूज्यन्ते के देश में
नारियों को निर्वस्त्र कर
टुकड़े करते हुए देखा
निर्मेष अपने समक्ष
सनातन को नष्ट होते हुए देखा।