अमावस की रात
अमावस की रात
बताओ ऐ कवि!
तूने पूनम की रात पर बहुत लिखा
चाँदनी और चाँद पर तो खूब लिखा
पर कभी क्या अमावस पर लिखा?
कहोगे! आखिर क्या खास है इसमें?
भयानक!अंधेरी! काली है ये रात!
पढ़ जो पाते दिल को
तो होती ये तेरे बस की बात।
सुनो!
मैंने है लिखा!
कितनी तन्हा!कितनी अकेली
काली पर बड़ी निराली है ये रात।
दाग़,बेदाग़,रंग-बदरंग
पाप-दोष, हर ढंग सबका
अपने दामन में छुपा लेती है ये रात।
एक चाँद का ही तो होता
अधिकार, पूनम की रात
पर यह तो अपने संग
लाती असंख्य तारों की बारात।
जीव जंतु छेड़कर मधुर तान
देते हैं मानो उसको सौगात।
अंधकार है तो क्या गम है
दिल मे प्यार क्या कम है!
साधक के साधना की
होती अकेली यह रात।
बड़ी निराली,दिलवाली
काली अमावस की रात।
©पंकज प्रियम
प्रेमांजली page no.52