अमावस का चाँद
हाँ मेरे हिस्से भी आया चाँद,
मैंने देखा उसे
मेरे आसमां में उतरते हुए
शुरू-शुरू में चाँदनी में भीगी मैं,
फिर निरन्तर मद्धिम होती गई
जीवन से चाँदनी ।
अब बहुत मुश्किल से कभी
थोड़ा सा नज़र आता है ।
चाँद का भी कोई कसूर नही
मैं ही उसे अमावस में मिली,
उस अमावस में जिसमें
सूर्य को भी ग्रहण लग जाता है,
फिर मेरे और चाँद के साथ
जो हुआ लाज़िमी ही है।