” अमर हमारी दोस्ती रहेगी “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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अब कहाँ रूठने
और मनाने की बात रही?
हम सभी से जुड़ गए
एहसास ही खलती रही !!
दूर इतने हम हो गए
कौन हमको जान पायेगा!
फेसबुक के पन्नों में
नहीं हमें पहचान पायेगा !!
हम किसी की बात से
आहत कभी भी हो गए!
आप हमारी भंगिमा को
पहचानने से भी रह गए !!
रूठने की अदा
देखकर हम उन्हें जान जाते थे !
उनकी पीड़ा को
समझकर करीब से पहचानते थे !!
रूठने मानाने का दौर
यूँहीं चलता रहता था!
प्यार का एहसास इस तरह
मिलता रहता था !!
पर आज कहने के लिए
विश्व से हम जुड़ गए हैं !
मित्र लाखों को बनाकर
फ़क्र से हम रह रहे हैं !!
कभी मर्म भेदी वाण से
आहत किसीको करते हैं!
दिल की बातों को
इन पन्नों में हम नहीं जानते हैं !!
बेरुखी का आलम
पहले तो अनफॉलो करते हैं !
बाद में विक्षुब्ध होकर
मित्र अनफ्रेंड बनके करते हैं !!
डिजिटल मित्रता है मित्रता
जब हम जुड़ें हैं प्यार से !
सम्मान सबको दें बराबर
शालीनता की बात से !!
हम भले उनको ना देखें
पर लेखनी उनकी कहेगी!
रूठने की बातें भूल जाएँ
अमर हमारी दोस्ती रहेगी !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड