अमर शहीद मंशाराम जसाठी(ताम्रकार), गुरु सक्सेना
अमर शहीद मंशाराम जसाठी(ताम्रकार)
जन्म 20नवम्बर 1913 शहादत 23अगस्त 1942. ,
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भारत छोड़ो आंदोलन
शहीद मंशाराम
अट्ठारह सौ संतावन में,हम
लगातार सौ साल लड़े।
आजादी पाने लुटे-पिटे।
गोलियां खाईं रणभूमि पड़े,
कई बार मिटे मिटकर जूझे,
घबराए ना जनधन नाशी पर।
होकर हताश बैठे न कभी,
चढ़ गए भले ही फांसी पर।
इस तरह सदी का अंत हुआ,
उन्नीस सौ बयालीस आया।
महीना अगस्त तेईस तिथि,
सत्याग्रह करने को लाया।
अंग्रेजों भारत छोड़ो की,
एक लहर देश में लहराई।
लेकर तूफानी गति वही,
नरसिंहपुर में चल कर आई
लगता था देर नहीं है अब,
आजाद देश के होने में।
लहराए तिरंगा गली-गली,
जब जिले के कोने कोने में।
जय घोष किया नरसिंहपुर ने,
गाडरवारा ललकार उठा।
कड़ कड़ बिजली सी कड़क,
करेली में तूफानी ज्वार उठा।
थे मानेगांव मड़ेसुर मुंगली,
गोटेगांव उमंग लिए।
तेंदूखेड़ा चौराखेड़ा
भुगबारा विप्लव भंग पिए।
बम्हनी बौछार बारहा
बोहानी ने थी भ्रकुटी तानी।
कौड़िया कंदेली करपगांव,
करताज मिले बासन पानी।
चांवरपाठा सालेचौंका,
पहने थे वीरोचित बाना।
आए उबाल मेंआमगांव,
भैंसा खुरपा डाँगीढाना।
बमरोदा लोकीपार,
शाहपुर झंडा गान गा रहे थे।
झामर मरका खैरी बैरी पर
जमकर खार खा रहे थे
खेरुआ खमरिया खड़े खड्ग
सम,लिए तिरंगा भारी से।
वंदे मातरम की आवाजें,
आ रही बुलंद पनारी से ।
बरमान बम्होरी लिलवानी,
सबने यह जंग साथ छेड़ी।
बघवार बमक तूमड़ा तमक,
बाघिन बन गई बेलखेड़ी।
ले सत्याग्रह गांडीव जिला,
प्रत्यंचा पूर्ण खींच ली थी।
सब नगर समर में कूद गए,
रणचंडी बनी चीचली थी।।
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एक दिवस पहले जुलूस,
सड़कों पर गया निकाला था।
दो क्रांतिकारियों को शासन ने,
नजर कैद कर डाला था।
नर्मदा प्रसाद व बाबूलाल,
क्रांति का ध्वज फहराये थे।
इस कारण राजमहल में ही,
वे बंदी गए बनाए थे।
सेनानी पैदल चल बिल्कुल,
तैयार नहीं थे जाने को।
ना कोई गाड़ीवान मिला,
गाडरवारा तक लाने को।।
पहिया टूटा बीमार बैल,
कोई कहे जुआड़ी कानी है।
इनको बैठा जोखिम भारी,
समझो कि जान गंवानी है।।
सबके घर चलते थे वैसे,
गाड़ी के मात्र सहारे थे।
सब बचे बहाना कर कर के,
पैसे न किसी को प्यारे थे।
निर्धन गरीब बेबस बेचारे,
देशभक्ति में पक्के थे।
लाचार पुलिस ने सेनानी,
इसलिए महल में रक्खे थे।
कई गुनी मिलेगी मजदूरी,
सुन जिनके ना प्रस्थान हुए।
वह धन्य चीचली धरा,
जहां पर ऐसे गाड़ीवान हुए।
कर वंदन गाड़ी वालों का,
आगे की कथा सुनाता हूं।
दूजे दिन निकला फिर जुलूस
नारे भाषण दोहराता हूं।
दर्शन कर दोनों वीरों के,
जागे सब नाम धाम लेकर।
वापस अपने घर लौट चले,
वैसा ही काम-धाम लेकर
चलते चलते ही विजयी विश्व,
तिरंगा प्यारा गाते थे।
अंग्रेजों भारत छोड़ो के,
नारे दोहराए जाते थे।
बस तभी सशस्त्र पुलिस लेकर
दंडाधिकारी आ धमका।
ललकार चुनौती भरे शब्द
ज्योंगोला फूट गया बम का।
ओ काले कुली ग॔वार तिरंगा
लिए कहां पर जाते हो।
निर्लज्ज कायरो हमें अहिंसा
दिखा दिखा इतराते हो।।
भारत मां के सच्चे सपूत,
जब जानूं फिर से सभा करो।
बुजदिलो सामने आंखों के,
जनता में जोश उमंग भरो।।
इतना सुनते ही शांति अहिंसा
का सारा माहौल गया।
बिष बुझे तीर से शब्द लगे,
लो खून सभी का खौल गया।
गूंजी जय भारत माता की,
जय जय महात्मा गांधी की।
अंग्रेजों भारत छोड़ो की ध्वनि
बनी आग सम आंधी की।।
आदेश दिया अधिकारी ने,
तत्काल लाठियां बरसाओ।
यह बिना पिटे ना मानेंगे,
पीटो पीटो न रहम खाओ।
चल पड़ी लाठियां खटाखट्ट,
सब पिटे नहीं टस से मस थे।
गांधी की बंधेअहिंसा में,
इसलिए बेचारे बेबस थे।।
जुल्मी ने जुल्म न बंद किए,
मारो मारो चिल्लाता था।
उत्साह पुलिस का बढा बढा,
लाठियाँ रहा चलवाता था
यह क्रम जारी था लगातार,
रोके से ना रुकता था मन।
क्या करें विधाता हाय हाय,
बन गई अहिंसा कायरपन।
खा रहे लाठियां खड़े-खड़े,
सब सिद्धांतों में जकड़े थे।
पिटवाता अग्रवाल उनको,
वह गांधी जी को पकड़े थे।।
वह न पिटते तो क्या करते,
दूजा तो कोई विकल्प ना था।
वह हिंसा का प्रतिकार करें,
ऐसा मन में संकल्प ना था।।
तब एकाएक लाठियां कई,
मंगल प्रसाद के सिर आईं।
गिर पड़ा रक्त-रंजित होकर,
फिर भी न लाठियाँ रुक पाईं।।
वे गिरे हुए को मार रहे,
बह गई खून की धारा थी।
देखा जुलूस ने मंगल को,
यह स्थिति किसे गवारा थी
मंसा की आंखें लाल,तमतमा गया
भुजाएं फड़क उठीं।
जांबाज जवानों के जुलूस में
ज्वालायें सी भड़क उठीं।।
सबने पत्थर ले हाथों में,
बरसात पुलिस पर कर डाली।
बोली जय हर हर महादेव,
जय मां दुर्गा जय जय काली।
सोचे मंशा पत्थर बरसा,
कब तक लड़ सकें लड़ाई है।
क्षण भर में एक पुलिस वाले
की लाठी वीर छुड़ाई है।
था दक्ष अखाड़े बाज लड़ा,
सिद्धांत अहिंसा खो बैठा।
पल में गांधी को छोड़,
चंद्रशेखर का साथी हो बैठा।।
लाठी लेकर ललकार लगा,
बोला अब मजा चखाऊं मैं।
आओ मेरे आगे आओ,
कायर है कौन बताऊं मैं।।
काले कुत्तों गद्दार पुलिस,
वालो गुलाम अंग्रेजों के।
पिट्टू जयचंदो चाटुकार,
चाहत सुविधा की सेजों के।
इतना कह लाठी मचल उठी,
खलबली मची पूरे दल में।
क्षण इधरचली क्षणउधर चली,
क्षण कहां चली अगले पल में।
लाठी की अद्भुत कला देख,
रह गए सिपाही दहले से।
वह हाथ उठायें पड़े वहां ,
मंशा की लाठी पहले से।
घेरे चहुँ ओर सिपाही थे,
वह सबके वार बचाता था।
क्षण इसे गिरा क्षण उसे गिरा
भीषण घनघोर मचाता था।।
बिछते जा रहे पुलिस वाले,
सब अपने प्राण सकेले से ।
पूरी की पूरी गार्ड थकी,
उस मंशाराम अकेले से।।
था अग्रवाल पूनम अफसर,
यह देख नजारा भौचक्का।
इससे न गार्ड टिक पाएगी,
मन में विचार आया पक्का।।
बोला अधिकारी एक आदमी
से डर कर मत भागो रे।
फेको लाठी आर्डर देता हूं,
अब बंदूकें दागो रे।
बंदूकें निकली उनके भी,
सब वार बचाए मंशा ने।
बंदूकों पर लाठी भारी
वह दांव दिखाये मंशा ने।।
क्षण लेट गया क्षण उलट गया,
क्षण बैठगया क्षण पलट गया।
लगता था जैसे सभी गोलियां
कोई हवा में गटक गया।।
बंदूकें व्यर्थ प्रबल लाठी,
घनघोर मेघ सी झड़ती थी।
कब कहां चली अब कहां चले
यह नहीं दिखाई पड़ती थी।।
लाठी के आगे बंदूकें चल,
चल कर भी शर्मातीं थीं।
वह धराशाई करता बंदूकें,
आजू-बाजू जाती थी।
चुपके से चालबाज अफसर
षड्यंत्र रचाया बेदर्दी।
एक मुट्ठी धूल वहां जाकर
मनसा की आंखों में भर दी।
मुंद गये नेत्र बंट गया ध्यान,
जब तक संभालता लाठी को।
सीने में गोलियां समा गईं,
कई मंशा राम जसाठी को।।
होकर शहीद गिरते-गिरते
उसके मुख से यह निकली लय।
ओ अंग्रेजों भारत छोड़ो,
मेरी भारत माता की जय।
रविवार दिवस रवि थका थका,
ठंडा होता पल प्रतिपल में।
होकर निशक्त निस्तेज बना,
पहुंचा निराश अस्ताचल में।
वह स्वयं सना लोहू सम था,
छटपट करते मुंह फेर गया।
वह दूर दूर तक पश्चिम में,
अपना रंग लाल बिखेर गया।
धरती अंबर पर भारी थी,
दोनों के रंग थे लाल लाल।
बस रंग अकेला मिलता था,
विपरीत सभी थे कदमताल।
वह थका थका इसमें उमंग,
वह तेजहीन यह चमक रहा।
वह दुति खोता ढलता ढलता,
यह पड़ा पड़ाभी दमक रहा।।
तन लाल रक्त रंजित पूरा,
यह देख दिशाएं खड़ीं मौन।
यह डूब रहा या निकल रहा,
यह और दूसरा सूर्य कौन।।
है लाल रंग पर सूरज में,
इस जैसा तेज न रहता है।
यह सूर्य नहीं कुछ और ही है,
मेरा मन ऐसा कहता है।
सुर सुमन सलिल वर्षा सराहते
रिमझिम मौसम भू पर था।
कवि कलम कौन उपमा गाये
वह उपमानों से ऊपर था।।
वह पराक्रमी वह धीर वीर वह
निडर साहसी रणबाँका।
वह आजादी का अग्रदूत,
असली सपूत भारत मां का।।
था ध्येयनिष्ठ थाअति विशिष्ट,
था सहज सरल था तेजवान।
वहभक्ति विवेक विचारभरा,
वह शक्तिपुंज मानव महान
वह चला गया जाते जाते,
असली पथ हमको दिखा गया
आजादी कैसे मिलती है
यह सीख प्राण दे सिखा गया।।
जब जब इतिहास लिखा जाएगा
वीरों की परिपाटी का।
श्रद्धा से नाम लिया जाएगा
मंशाराम जसाठी का।।
शत् शत् कर नमन वीर तेरी,
पद रज माथे पर लेता हूं
कवि गुरु काव्य के सुमन चढ़ा
श्रद्धांजलि तुझको देता हूं।।
गुरु सक्सेना
नरसिंहपुर मध्य प्रदेश