अमर रहेगा रावण
जल गया रावण फिर से हर साल की तरह,
पर इंसा में अभी तक जिन्दा एक काल की तरह I
मन के भीतर बैठा है एक ख्याल की तरह,
लिपटा हुआ है तन में जैसे एक जाल की तरह I
करले कोशिश तू क्या इसे निकाल पाएगा ?
हर बार पूछा जाएगा एक सवाल की तरह I
तीर से मारों इसे या किसी भाल की तरह,
न जलेगा न कटेगा कोई जंजाल की तरह I
सीख न ले जब तक तू संस्कार राम की तरह,
अमर रहेगा रावण तेरे भीतर हर साल की तरह I
अमित कुमार प्रसाद, आसनसोल (प. बंगाल)