अमरनाथ के श्रद्धालुओं की अंतिम यात्रा।
मौत लिखी थी भाग्य में ,
मरना तो यूं भी था ।
आतंकवादियों से बचाना चाहते थे,
आगे महाकाल खड़ा था ।
बादल के रूप में आई थी ,
ना जाने क्यों और कैसे फट पड़ा था।
प्राकृतिक आपदा थी ,
या नियति का इशारा था।
ना जाने कहां कहां से श्रद्धालु ,
आए थे भक्ति भावना से भरे ,
बाबा बर्फानी के दर्शन करने हेतू।
मगर सामने तो काल खड़ा था।
घर पर राह देखते परिजनों के ,
दुर्भाग्य में इंतजार करना ही लिखा गया ।
ऐसा तो जिन्होंने सोचा ही नहीं था ।
खैर प्रारब्ध के अनुसार जो लिखा था,
वही तो होना था ।