अभी राह कोई नहीं जानता हूँ ।
गजल- अभी राह कोई नहीं जानता हूँ ।
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गजल
काफ़िया-अता
रदीफ़- हूँ
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
अभी राह कोई नहीं जानता हूँ ।
बढ़ूँगा फलक तक यही जानता हूँ।
दिया साथ मेरा किसी ने नही पर,
चढ़ूँगा नभ पे’ ये^ मन ठानता हूँ।
करूँ नाम रौशन पिता मातु का मैं,
ज़लालत बहुत कम नहीं जानता हूँ ।
दिखा ख्वाब मुझको चढ़ा पेड़ पर दे,
कहे वह अभी तेरी^ जड़ काटता हूँ।
मिले मंजिल कैसे यह सोचता हूँ,
यूँ^ख्वाबों की नई पोटरी बांधता हूँ।
मगर हार “अभिनव” को^ मंजूर कब है,
मैं प्रतिदिन नया ढूढ़ता रास्ता हूँ ।
मौलिक एवं स्वरचित:-
अभिनव मिश्र”अदम्य✍️✍️
शाहजहांपुर,उ.प्र.