अभी बहरा नहीं हूँ
चलो ये मान लेता हूँ कि मैं गहरा नहीं हूँ
समंदर मैं भी पर तेरी तरह ठहरा नहीं हूँ
मिरे पथ पर तुझे साए दरख़्तों के मिलेंगे
हूँ मैं भी रेत सा लेकिन कोई सहरा नहीं हूँ
भिगो लूँ शायरी को दर्द से तो लौट जाऊँ
जमाने की तरह ऐ इश्क़ मैं पहरा नहीं हूँ
बदलती नीयतों देखो सँभल कर बात करना
मैं गूँगा हो गया हूँ पर अभी बहरा नहीं हूँ
बिछाकर के बिसातें साजिशों की बैठ लेकिन
चले तू चाल मुझसे मैं तिरा मोहरा नही हूँ