अभिव्यक्ति
अगर आचरण,
सहज सरल हो,
दुश्मन भी,
बन जाते मीत,
अगर भावना,
सरस सलिल हो,
बातचीत लगती है गीत,
मनोवृत्तियों,मनोभाव को,
जब भी कहना होता है,
तब,मुख के शब्दों गहना,
उसने पहना होता है ,
अहंकार से हम बन जाते,
नीरस और निरर्थक वक्ता,
मगर प्रेम जिस मन मे होता,
वाणी मे भी ,
खूब झलकता ,
मधुर मधुर सा ,
अपना मन हो,
मधुर मधुर हो वाणी,
इस जीवन से कटुता कम हो,
ऐसा प्रण ले प्राणी।