अभिव्यक्ति की आजादी, कितनी होना चाहिए?
भावनाएं किसी की भी हों, आहत नहीं होना चाहिए
अभिव्यक्ति की आजादी, इतनी भी नहीं चाहिए
आजादी की भी, कुछ तो सीमा होना चाहिए
कभी यह आजादी, आग लगा देती है
समूची मानवता को, खतरे में डाल देती है
कभी धार्मिक भावनाएं, भड़क जाती हैं
कभी नस्ल जाति पर, समस्याएं आतीं हैं
भाषा और अंचल पर, आग भड़क जाती है
हिंसा और द़ेष में, निर्दोषों की जान जाती है
कभी-कभी सोचता हूं, सभ्य समाज से पूछता हूं
क्या कोई ऐसा भी मंच हो सकता है?
जहां प्रजातांत्रिक तरीके से, आजादी को अभिव्यक्त किया जाए?
वैश्विक समस्याओं का निराकरण किया जाए?
भावनाओं पर काबू रख, पूरी बात सुनी जाए
आजादी के नाम पर, कुछ सिरफिरे जहर बोते हैं
उनकी आजादी में, अपने एजेंडे होते हैं
मानव समाज को, यह नुकसानदायक होते हैं
देश दुनिया में अब, चर्चा होना चाहिए
अभिव्यक्ति की कितनी आजादी होना चाहिए?
सुरेश कुमार चतुर्वेदी