अभिलाषा
भाग जाना चाहती हूँ
नफरत और यु्द्ध से भरे
जहाँ से…
जिसमे खुशबू नहीं
उस हवा से…
जिसमें रंग नहीं
उस समाँ से…
मुझे डूबने के लिए
प्रदूषण रहित
दिमागों का समंदर चाहिए…
खो जाने के लिए
स्वच्छ, विकार रहित
विचारों का बवंडर चाहिए…
चाहती हूँ
उड़ कर जाऊँ मैं…
एक ऐसे जहाँ का
पता लगाऊँ मैं…
जहाँ यह जरूरी हो
के लोग
एक- दूसरे के ख्वाबों में रंग भरें…
ना हो
कलुषित मस्तिष्क जंग भरे…
जहाँ पुरवाई हो, प्यार हो
जहाँ ममत्व हो
परवाह हो…
हर तरफ
दुलार ही दुलार हो…
नफरत की
ना कोई दीवार हो…
कहाँ जाऊँ मैं!
ऐसा जहाँ
कहाँ से ढूँढ कर लाऊँ मैं???