अभिलाषा
मैं कवि हूँ
कल्पना ही मेरा जीवन
सोचता हूँ
मेघपट से मैं गिरा
स्वाती की एक बूंद हूँ
सूर्य की स्वर्णिम किरण की
तेज है मुझमें तो क्या
तप रहा हूँ
रेत की छाती पर
और कोसता हूँ स्वयं को
भाग्य और भगवान को
मैं कवि हूँ
कल्पना ही मेरा जीवन
सोचता हूँ
मैं यदि गिरता यहाँ
मुख में कोई सीप के
बन कर मोती मैं चमकता
स्वर्णमुकुट के शीर्ष पर।।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”