अभिलाषा
अभिलाषा
बौरों से लदी हों अमरायी ,
कोयल की कुहुकती तान रहे|
कुसुमों से भरी हो हर क्यारी ,
मन उपवन में मधुमास रहे|
चहूँ ओर सुगंध बसे ऐसी,
मन आनन्दित मृदु हास रहे|
पुरवाई बहे नित सुख बरसे
हर अंतर में मधुमास रहे |
मधुरिम सपनों की रहे आस,
जब तक इस तन में साँस रहे|
पल हों दुख के या खुशियों के ,
मन में छाया मधुमास रहे |
सुख दुख में सदा एक रस हों ,
मन में उत्साह अदम्य रहे |
मुस्कान अधर पर खिली रहे
हर आँगन में मधुमास रहे|
वाणी में सदा मधुरता हो ,
ऐसा ही सदा प्रयास रहे |
फैले जग में सुंदर सुवास ,
चहूँ ओर सदा मधुमास रहे|
जन जीवन में नव जीवन हो,
हर गाँव गली खुशियाँ बरसे|
चहुँ ओर अभाव न शेष रहे,
सर्वत्र खिला मधुमास रहे|
किल्कारी गूंजे घर आँगन ,
ऋतुएं मधु ऋतु सी खिल जाए|
मधु ‘मंजूषा’ जगदीश भरो ,
जग में छाया मधुमास रहे|
मंजूषा श्रीवास्तव