अभिमन्यु
सत्य की पताका अब पहरायेगी,
अधर्मियाे का नाश हाेगा, धर्म की जय हाेगी,
आज आ गया युद्ध में, वह चंद्रमा का अंशी,
उम्र अभी १६ थी, वह वीर था चंद वंशी,
धर्म के इस युद्ध में, पहले ही दिन भीष्म से टकराया था,
सुभद्रा नंदन ने अपनी वीरता का लाेहा मनवाया था,
माता के गर्भ में चक्रव्यूह भेदन उसने सीखा था,
वह कृष्ण बलराम का शिष्य था, हार का स्वाद न चखा था,
युद्ध के तेरहवे ही दिन उसने अद्भुत वीरता दिखलाई थी,
अकेले ही काैरवाे के दस हजार सैनिकाे काे मृत्यु शैया दिलायी थी,
निडर हाेकर बढ़ता गया चक्रव्यूह भेदन काे,
काेई काैरव उसकाे राेक न सका, सह न सका उसके वेधन काे,
राह में राेकने आया ,दुर्याेधन सुत लक्ष्मण,
पल भर भी ठहर न सका, भानूमति नंदन का हाे गया मरण,
काैन सम्मुख आयेगा, आज इस आंधी के,
शल्य, कृतवर्मा और दुःशासन सुत सभी तिनका सम ढह गये सम्मुख इस आंधी के,
वह अकेला वीर लड़ा इन महारथियाे से, जाे अपनी वीरता का इस प्रकार बखान करते थे,
भीष्म द्राेण एक माह में, कृपाचार्य दाे माह में, अश्वत्थमा १० दिन में आैर कर्ण ५ दिन में अकेले पूरी सेना काे मार सकते थे,
महादेव, यम, काल और क्राेध का अंश अश्वत्थमा और शल्य भी हारकर भागे,
दाेनाे परशुराम शिष्य भी टिक न सके, इस वासुदेव शिष्य के आगे,
दुर्याेधन बहुत झल्लाया, माराे मेरे सुत घातक काे,
साताे महारथियाे ने मिलकरे घेरा उस वीर बालक काे,
उसकी फुर्ती देखकर, इन्द्र भी रह जाये दंग,
सात सात महारथी भी कर न सके उसका ध्यान भंग,
तब द्राेण ने कहा यूं, यदि धनुष रहेगा जब तक इसके पास,
देवता भी जीत न सकेंगे , शत्रु भटकेगा न इसके पास,
वीर धनुर्धर सूर्य पुत्र कर्ण ने, काट डाला उसका धनुष,
क्रतवर्मा ने घाेडाे काे,क्रपाचार्य ने सारथी काे मारा,छूट गया धनुष,
निडर हाेकर अंतिम सांस तक लड़ता रहा वाे वीर,
हाथाे में लेकर रथ का पहिया, शत्रु से जूझता रहा वाे वीर,
एक निहत्थे काे सात सात शस्त्रधारी महारथियाे ने मारा,
अधर्म का सहारा लिया, इस धर्म युद्ध मे एक वीर काे मारा,
वह वीर गति काे प्राप्त हुआ, छाेड गया उत्तरा के गर्भ में अपना अंश,
महाभारत के युद्ध में काेई सुत न बचा, उसी अंश से चला पाण्डवाे का वंश,
धन्य है अभिमन्यु, धन्य है उसकी वीरता,
रहेगी जब तक धरा, याद रहेगी उसकी वीरता,
।।।जेपीएल।।।