अभिनय…….
बचपन में परियों की कहानी सुनते थे…
जब भी बच्चे को सुलाते थे…
बोलते थे की सो जा ….
सपने में परी देश से परी आएगी…
सुन्दर सुन्दर खिलोने लाएगी…
सुन्दर से पंखों पे हो सवार….
तुमको भी उडा ले जायेगी….
परी देश से परी आएगी….
पर वो सपने में सपने की तरह परी का आना…
सच में सुन्दर सा सपना ही था…
परी तो आज भी आती है….
पर किसी को अपनाना नहीं आता…
कुछ तो जन्म से पहले ही मार दी जाती हैं…
किसी के पंखों को काटके लहूलुहान किया जाता है…
सब के सामने….
पता नहीं परी की सुंदरता दोषी है या सपना दोषी…
या हमारा विकृत होता मन…
या कि वो दौर और ही था…जब परियों का आना सुखद रहा होगा…
सब के सब चिंतन…मंथन में व्यस्त हो जाते हैं…
कुछ देर को सब मौन हो जाते हैं….
शान्ति के लिए…
फिर एक परी लहूलुहान होती है…
फिर सब नाटक होता है…
फिर हम सब नाटक में पात्र बन…
अपना अपना अभिनय करते हैं….
और फिर अभिनय पर पुरूस्कार मिलते हैं…
परी….खो जाती है…
अभिनय नहीं है न वो…
जो याद रखी जाए….
और स्वागत किया जाए…
है ना….
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/सी.एम्. शर्मा