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27 Aug 2023 · 1 min read

अभिनय

कब तक बदलता रहूं
गिरगिट की तरह रंग
एक चेहरा पे कई के चेहरे
कब तक छुपता फिरूं
शीशे की तरह टूट कर
होठों पे झूठी मुस्कान लिए
कब तक अभिनय करूं

बारिश में चलते चलते
रोते गाते और हँसते हुए
दुनिया की थपोडें खाते
जेठ दोपहरी में बंजारा बन
इधर उधर भटकता फिरता हूं
गांव गांव शहर शहर
दुनिया पे खेल, नाटक के
कब तक अभिनय करूं

तोड़ना चाहता हूं
बंधन की जंजीरे
होना चाहता हूं
उन्मुक्त माया से
कब तक अभिनय करूं
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल

Language: Hindi
258 Views

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