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21 Jul 2021 · 1 min read

अभिनय चरित्रम्

अभिनय चरित्रम्
°°°°°°°°°°°°°°°°
अभिनय की बेपरवाह ये दुनियाँ,
जहां सब कुछ बिकते देखा है।
फिल्मजगत की मायानगरी को,
अंदर से तड़पते देखा है।

क्षण भर में ही अश्रु टपके,
क्षण भर में पुलकित मन सागर।
भावनाओं की बाजार है ऐसी,
बिक जाए अनमोल हृदय भी।
इस नगरी के सफल सितारे,
रंग बदलते गिरगिट जैसे।
अभिनय के कायल थे जो भी ,
निज जीवन घुटते देखा है।

मद मदिरा मदमस्त मायावी
मानव यहां पग-पग पर दिखता।
बनावटीपन का बाजार है ऐसा,
दिल की कीमत पूछो मत।
अश्क बहे उसकी भी क़ीमत,
हंसी-ठिठोली मंहगी बिकती है।
ख्वाबों को संजोए बाला को,
घनघोर बला बनते देखा है।

सुखमय दिखता एहसास भी,
खोखलेपन से घिरा होता है।
उदार मन सुशांत हृदय को,
अंतहीन वेदना से व्यथित देखा है।
उजियारे की चकाचौंध में,
मायानगरी की कुटिल माया।
कर-कर के अभिनय हर रस में,
रसहीन हृदय बनते देखा है ।

काश ये अभिनय की जीवंत प्रस्तुति,
निज जीवन में भी संग-संग चलती।
रिश्तों संग चरित्र भी उनके,
पुरवइयां के संग संग बहती।
स्नेह की चादर ओढ़कर रिश्ते,
जन्म-जन्म तक साथ ही चलते।
मानव जाति के ,उत्तम पुरुषोत्तम
श्रीराम के अभिनय भी,जग देखा है।

फिल्मजगत की मायानगरी को,
अंदर से तड़पते देखा है।
अभिनय जगत के विशाल हृदय को,
चरित्रहीन बनते देखा है।

मौलिक एवं स्वरचित

© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २१/०७/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
8 Likes · 8 Comments · 995 Views
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