अभिनन्दन
गंगाक दूनू ओर ,
दोसर नदी आ पोखर
भरि गेल ,गर्जन स्वर
चाहे ओ पहाड़,मैदान हो,
घाटी हो वा खाई।
वन मे बानरक चहक
करूण विसंगत चहक
सुनबा मे आबए लागल ।
कतहु सिंहक गर्जन
कतहु झरनी गायन।
मातल संग पवन
मेहँदी ऊखेड़ रहल
चिड़ै-चुनमुन साधक
जुटान अन्नधन के
प्रकृति गोद से
अभिनन्दन संग
नववर्ष मे