अभाव अमर है
अभाव अमर है
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सारी सम्पदा स्वतंत्र है
होने के लिए हमारी,तुम्हारी,सबों की
अभाव तब भी है हमारा,तुम्हारा,सबों का।
लेन, देन अनवरत है दैहिक,अदैहिक अस्तित्वों में
कोई सुभाव किन्तु,सुसंगत नहीं है।
हताश हैं सारे दरिद्र और
हतप्रभ धनाढ्य बेचारे।
ग्रंथों से उठा ले आये
और थोप दिया अभाव
हमारा संसार हुआ दुरूह।
ग्रंथों को पाल-पोस आये
किन्तु,रहते रहे रिक्त, भाव से
गढ़ न पाये पर-उपकारी स्वभाव।
ग्रंथों में मानव का मन
अमानवीय है, मानवता हैरान।
शोषण एवम् शासन राष्ट्र नहीं बनाता है
न तो बनाता है संशोधित इन्सान।
अभाव का स्वभाव सत्,रज,तम नहीं होता
जीवित रखने का होता है प्राण।
मानव करता आया है शासन अनुशासन के नाम में
और शोषण प्राण-रक्षा के तामझाम में।
अभाव से स्वभाव नष्ट होने का उदाहरण
प्रचुरता से प्रसारित,प्रवाहित।
स्वभाव से अभाव नष्ट करने हेतु कोई कदम
उठाये कोई धर्मग्रंथ,बने पुरोहित।
दिखे अपना अभाव नष्ट करने में व्यस्त।
कलाओं का विकास अभाव से भी होने की है
संभावनाएँ।
इसलिए अभाव को छुट्टा छोड़ा है क्या
पुरोधाओं ने।
नृत्य की कला,हाथ फैलाने की कला,
निकृष्ट कर्म करने को तत्पर होने की कला।
शासित और शोषित होने की कला।
हमारे अभाव हमें, प्रबुद्ध होने के बावजूद
करते हैं बाध्य चुनने को अनैसर्गिक वृति,
अवांक्षित और अपमानित कृति।
समता के मूल सिद्धांत के बजाय
संसाधनों के विस्तारवाद को सह लेने की प्रवृति।
हमारे अभाव को अमर तुमने बनाया है
लिखकर ग्रंथ बताकर स्मृति।
राजाओं के भाट, राजाओं के अपकीर्ति।
हम निहारते रहे निहारिकाओं को
संस्कृतियों और सभ्यताओं को
अभाव की प्रचुरताओं को करने समाप्त।
किसीने उतार दिया ईश्वर
हमारे अभाव को ईश्वरसम्मत बताने।
अभाव अमर है इसलिए।
अभाव की नीयत प्रचुरता है
किन्तु,षडयंत्रों ने बना दिया नियति।
आसमान सर्वसम्मति से सबका है
षडयंत्र यहाँ विफल।
हवा हमारा भी हुआ क्योंकि
मुख,भुजा,उदर से सका न निकल।
अभाव चरण से निकलकर हुआ है विह्वल।
भूख की निरंतनता अभाव को देता आया जन्म।
चाहे उदर की हो अथवा मन की।
मन का अभाव ऐन्द्रिय-अनुशासन का अनुगत
उदर का निरंकुश अऩ्न की।
मृत्यु को जीवन का अभाव खलता है
और क्षुधित जीवन को मृत्यु का।
विलक्षण।
असत्य को सत्य का भय ज्यों
सत्य को असत्य से हर क्षण।
————————————16/7/24