अभागीन ममता
-हाय री अभागिन ममता –
विनाश काले विपरीत बुद्धि ,
पाप पे पाप कर रहा ,नहीं कर रहा
वो अपने मन की शुद्धि।
सामने मौत को देखकर भी नहीं हो रहा संज्ञान ।
अकारण ही क्रूर शरारत से ले ली दो मासूमों की जान ।
दोष उसका क्या था ? यही ना !
के उसने किया मानव पर यकीन,
हाय ! भोले पशु ! जैसी तेरी किस्मत ,
ऐसी किसी की हो नहीं।
एक ममता मयी मां और एक नवजात शिशु ,
की हत्या कर अरे मानव तूने क्या पाया ?
इनके हृदय से निकली चीत्कार,
और इनकी दुखी आत्मा के पुकार से ,
तूने अपने हिस्से औरअधिक दुर्भाग्य बढ़ाया ।
अरे कुछ तो शर्म कर !
उस मासूम बेजुबान ने जाते हुए भी किसी को
हानि ना पहुंचाई ,खामोशी से प्राण दे दिए ,
मगर वह सब के दिलों में अमर हो गईं।