अभागन
अभागन
अरी …ओ कलमुँही …फूटे मेरे करम …क्या कर रही है ‘फरस’ का सिमेंट उखाड़कर ही दम लेगी क्या ? जा तैयार हो जा ।
उसकी तंद्रा टूटी ।अनाथ आश्रम की अम्मा की आवाज कानों में पड़ते ही उसके हाथों की गति तेज हो गई , कब से वह आँगन में एक ही जगह पौंछा रगड़े जा रही है।
उसके लिए विधाता ने तीन ही नामों की सृष्टि की थी कामचोर,कलमुँही और अभागन खैर… वह काम निपटाकर तैयार हो गई । सब बच्चे हॉल में जमा हो गए। वह सोच रही थी क्या उसे कब माँ – बाप मिलेंगे ? तभी अम्मा की मीठी आवाज आई चलो बच्चों मेरे पास आओ …मैम साहिब आ गई हैं ।
बच्चे एक दूसरे को धकियाते हुए आगे बढ़े ।अम्मा बोली – मैम साहिब अपने आप जिसे बुलाएगीं वह उठकर आगे आएगा और जो पूछे वो बताएगा । तभी मेम साहिब की नजर कोने में खड़ी एक आकृति की तरफ गई उन्होनें इशारा करते हुए कहा इसका क्या नाम है ?
इधर आओ ज्योति बेटी … अम्मा ने प्यार से पुकारा ।
वह असमंजस में चारों ओर देखने लगी । क्या नाम है तुम्हारा ? मैम ने पुछा । वह कुछ नहीं बोल सकी अचानक । उसने विस्मय सहित अस्फुट स्वर में कहा…..कल… न…..अभा….अम्मा बीच में ही बोल उठी नहीं नहीं ज्यो…ति । डर रही है बड़े भाग वाली है ।
ज्योति नाम तो बताओ अपना … क्या तुम अपनी ज्योति से मेरे घर को जगमगाओगी ?
वह आँखें फाड़े नवागंतुक को देखे जा रही थी ।
लघुकथाकार -@ मनोज कुमार सामरिया ‘मनु’