अब
तेरी क़ब्र पर रखे फूल
मुरझाने लगे थे अब
और मेरे आंसू भी तो
सूखने लगे थे अब
तेरा ग़म ही तो अब
मुझमे बाकी था कहीं
जो सिसकियों को मैं
पिये जा रहा था अब
तेरी यादें जो बन्द पड़ी थीं
अंधेरे से परेशान घुटती हुईं
उन्हीं को उजाले देने को
किरण ढूंढ रहा था अब
उन यादों को आज़ाद कर
तेरे पास आ जाना चाहता हूं
पर जो ख़्वाब हमने देखे थे
उन्हें तेरी इस दुनिया में
सलामत रखने के लिये ही
जिये जा रहा हूँ मैं अब
-प्रतीक