– अब सबकुछ धुधला – धुधला लगता है –
– अब सबकुछ धुधला – धुधला लगता है –
बचपन में जहा खेला कूदा,
बहुत की थी मौज मस्ती,
किसी बात का न कोई अवसाद न किसी बात की चिंता,
बचपन छोड़ आई किशोरावस्था तब मन विचलित हो गया,
बदमाशी बहुत की पर न कोई अवसाद पाल पाए,
घरवालो के हिसाब से मेरा जीवन ढल जाए,
युवावस्था में जब मन को चैन न आए,
शादी करके घरवाले अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाए,
आई अब है प्रोढावस्था
शरीर से कमजोर हो गए काम कोई न कर पाए,
आंखे कमजोर हो गई ,
कोई साफ नजर ना आए,
अब सबकुछ धुंधला धुंधला सा लगता है,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान
संपर्क – 7742016184