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16 Nov 2018 · 1 min read

अब वो भी जूठे लगते है…

जिस कलम की स्याही से…
लिखता था मैं तेरा नाम
ऐसी नफरत हुई कलम से….
अब लगता सब जूठा है

जब से दूर हुई है तू…..
सारे सपने जूठे है
जो कहते थे अपने है….
अब वो भी जूठे लगते है

न होता ऐसा तेरा दीदार…
सारे सपने मेरे होते
राजकुमार सा बैठा होता ….
अपनी आलीशान महल में

ऐसे न चेहरे मुर्झाए होते….
ऐसे न आवाजे रुकती
सारे सपने अपने होते……
अपनी आलीशान महल में बैठे होते

लेखक – कुंवर नितीश सिंह

Language: Hindi
1 Like · 435 Views
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