*अब मान भी जाओ*
क्यों नाराज़ हो मुझसे इस कदर तुम
देखते ही मुँह फेर लेते हो आजकल तुम
लगता नहीं तेरे बिना मेरा दिल भी कहीं
अब बहुत हुई नाराज़गी, मान जाओ न तुम
तुझसे ही है ये मेरी ज़िंदगी हसीं
लौटकर इसमें अब इसको महका दो तुम
अजीब सा ख़ालीपन है तेरे बिन ज़िंदगी में
फिर भी मैं तो तेरी याद में रहता हूं गुम
है नाराज़गी भी अच्छी इश्क़ में कभी कभी
रहे अहसास इतना, हो बस मेरे ही तुम
लेकिन न जाना कभी दूर इतना भी मुझसे
जो चाहकर भी फिर न मिल पाए हम तुम
तुझको बसाया है मैंने इस दिल में मेरे
मुझको भी अपने दिल में जगह देना तुम
कुछ नहीं चाहिए तेरे सिवा और मुझे
है अगर तू संग मेरे, मेरे लिये ज़माना हो तुम
अब और सज़ा मत दो मुझे, हे प्रिये
भूलकर सबकुछ, आ जाओ मेरी बाहों में तुम
भूल जाओगे गिले शिकवे सारे पलभर में
देख लो आज़माकर एक बार ये भी तुम
है चाहत मेरी भी यही, है चाहत तेरी भी यही
जीवन की राह पर हमसफ़र रहे हम तुम
फिर छोटी छोटी बातों पर क्यों समय गंवाना
मिलकर फिर एकबार, क्यों न प्यार से रहे हम तुम
तेरे बिना झरने भी बहता पानी है
मेरी ज़िंदगी की रवानी हो तुम
हो मेरे जीवन की किताब की सबसे प्यारी कहानी
सुनो ना! मेरे इस दिल की रानी हो तुम।