अब महंगाई पर कोई विरोध नहीं किया जाता!
एक जमाना वह था,जब थोड़ी सी भी महंगाई बढ़ती तो आम जन से लेकर हर राजनैतिक दल इसके विरोध में सड़कों पर उतर आते थे, एक समय पर तो माननीय सांसद ने प्याज जैसी दैनिक उपयोग की जरूरत के दाम बढने पर संसद भवन में प्याज को तब की सरकार के सम्मुख प्रस्तुत कर विरोध जताया था, और सरकार को शर्मिंदा होना पड़ा, तथा प्याज के दाम काबू में करने के लिए आयात तक करना पड़ा था, एवं जमाखोरों के विरुद्ध दो कानूनी कार्रवाई की गई थी!
इसके बाद वह, समय भी आया जब देश में कल कारखानों के स्थापित होने से रोजगार सृजन प्रारंभ किया, सरकार में कार्यरत कर्मचारियों की वेतन वृद्धि से लोगों की आय में संम्वृद्धि हुई तो उनमें कार्यरत कर्मचारियों में दो पहिया वाहनों के खरीद की प्रवृत्ति बढ़ती गई ऐसे में जब पैट्रोल के दाम बढने लगे तो कर्मचारी संगठन एवं विरोधी दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया, और सरकार को अपने शुल्क में कटौती करने को बाध्य होना पड़ा!
इस तरह से जब तब महंगाई बढ़ती तो कर्मचारी संगठनों के साथ छात्र संगठन भी विरोध में खड़े होने लगे, राजनीतिक दलों के लिए तो यह जनता के सम्मुख जाकर उसके प्रति अपनी निष्ठा जिम्मेदारी और जवाबदेही दिखाने का एक अवसर की तरह आ जाता था!
वह दौर भी आया जब विपक्ष में बैठने वाले सत्ता में आ गए थे तब भी जब जब दैनिक उपयोग की वस्तुओं के दाम बढने लगते विपक्ष में मौजूद राजनीतिक दलों में इसके विरोध में खड़े होने की होड़ लगी रहती थी, कर्मचारी संगठनों के साथ छात्र संगठन भी इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे, यह परंपरा सी बन गई कि जब भी दैनिक उपयोग की वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे, विपक्ष के नेताओं को इसका विरोध करना ही है, कर्मचारी संगठनों में अब गुटबाजी के साथ अपने वैचारिक दल की सरकार होने पर उनकी अनिक्षा सामने आ जाती, यही छात्र संगठन भी कर रहे थे, किन्तु एक पक्ष जो सरकार से असंतुष्ट रहता था, वह अपनी असहमति प्रकट करने लगते, जिससे सत्ता पक्ष पर नैतिक दबाव बढ़ने लगता था, और वह चाहे अनचाहे अपने कदम पीछे खींचने को मजबूर हो जाया करती थी।
लेकिन अब ऐसा नहीं रहा जब भी विरोध में आवाज उठाई जाती है तो उसे पार्टी/सरकार/एवं व्यक्ति का विरोधी मान कर खारिज करने का प्रचलन बड़े जोर शोर से किया जा रहा है, कोई भी व्यक्ति, विशिष्ट नागरिक,जन साधारण, तक की बात अनसुनी कर दी जाती है, राजनीतिक दलों का विरोध तो सिरे से खारिज करके उसी पर उन नितियों पर चलने का दोष चस्पा करके अपना बचाव किया जाने लगा है, आज किसी भी तरह के जन-आंदोलन सरकार के लिए कोई मायने नहीं रखते, ऐसा महसूस कराया जा रहा है कि हमें देश में पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने का निर्णय जनता ने किया है, यह भी समझने में हिचकिचाहट होती है कि जो विपक्ष, जो जनता, जो विशिष्ट नागरिक तब एक सरकार के कामकाज से असंतुष्ट होकर आपके समर्थन में आए हैं, उनकी
राय,उस विपक्ष को जिसे इसी देश के नागरिकों ने विपक्ष में बैठ कर जन सरोकारों से जुड़े रहने के लिए अधिकृत किया है, और जो कभी देश में सरकारें चला कर अपने कर्तव्य का निर्वहन देश के संविधान के अनुसार कर चुकी है, वह आज अचानक देश के विरोधी, देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा कैसे हो गए हैं, और जनहित के मुद्दों को उठाने पर कोई देश विरोधी कैसे हो जाता है, और यदि ऐसा होता तो जब आप विपक्ष में थे तब यही नियम कानून आप पर भी लागू हो सकते थे, किन्तु तब के सत्ता पक्ष ने ऐसी अनरगल बातें कहने की हिमाकत नहीं की, एवं विपक्ष को, बुद्धि जीवियों , कर्मचारी संगठनों को, एवं आम नागरिकों को देश भक्ति का प्रमाणपत्र जारी करने एवं देशविरोधी होने का तमगा नहीं दिया था!
आज जब डीजल पेट्रोल, गैस सिलेंडर, खाद्यान्न की वस्तुओं के दाम बढ रहे हैं, और सरकारें अपने राजस्व उगाही में अपने लाभ को लेकर ज्यादा ही प्रयत्न कर रही है, मुनाफा खोंरो के विरुद्ध कार्रवाई करने में हिचक दिखा रही है, अपने फैसले को पुनर्विचार के लिए तैयार नहीं है, उससे लगता है कि हम पुनः उस दौर में प्रवेश कर रहे हैं जब देश में घोषित आपातकाल लागू था, तब भी लोगों में सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले पर उत्पीड़न की कार्रवाई की जाने लगी थी,तब जनता मूकदर्शक बनी सब कुछ देख रही थी, और जैसे ही उसके पास सरकार चुनने का अवसर मिला उसने सारी ज्यादतियों का हिसाब चुकता कर दिया!
आज हम ऐसे ही समय से रुबरु हैं जब सरकार को यह खुशफहमी होने लगी है कि वह जो भी कर रही है वही जायज है वही सर्वथा उचित है, और सरकार में शामिल ऐसे लोग जो जनता के मध्य अपनी कोई साख नहीं रखते हैं वह अपने नेता को उचित अनुचित का अहसास कराने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, और आंख मूंद कर हर हाल में साथ खड़े दिखाई देने की होड़ में लगे हैं, ऐसे नेता कभी किसी के हितैषी नहीं रहे हैं, इसका सबसे ज्यादा अनुभव कांग्रेस को है किन्तु वह भी इसे एक सामान्य प्रक्रिया के तहत ही देख कर आगे बढ़ रही है! ऐसे अवसर वादी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, और जैसे ही जनता के विरोध का अहसास होने लगता है तो चुनाव के ठीक पहले पाला बदल करके छोड़ कर आए दल में खामियां और जिस दल से नाता जोड़ा गया है कि नीतियों को देश हित में ठहरा कर चापलूसी का स्वांग करते हुए ऐसे दिखाई देते हैं जैसे देश के नागरिकों को समझा रहे हों कि अवसर का लाभ उठाना है तो मेरी तरह का आचरण करो, लेकिन देश में आज भी ऐसे खुद्दार लोगों की कमी नहीं है, जो गलत को गलत कहने का साहस दिखाने में कोई भी कोताही नहीं करते, आज देश ऐसे ही लोगों को निहार रहा है, यह अलग बात है कि ऐसे लोग इक्के दुक्के मुद्दों पर ही अपना विरोध दर्ज कराते हैं, और यही कारण है कि अब महंगाई जैसे आम आवश्यकता कि जरुरत पर भी लोगों को गुस्सा नहीं आता, तथा वह सामान्य इंसान जो दैनिक जरूरतों के लिए संघर्षरत है वह अपने विरोध को दर्ज कराने का समय ही नहीं निकाल पाते, और यही वजह है कि आज लोग यथार्थ वादी रुख अपना कर, दूसरे से उम्मीद लगाए बैठे हैं।