अब भी है।
रदीफ- अब भी है।
कलम मेरी,उनके अशआर अब भी हैं।
दूर हैं, मगर सरोकार अब भी हैं।
उनकी चाहत का खुमार अब भी है।
वो मेरी ग़ज़लों में शुमार अब भी हैं।
चलती चाहत की बयार,अब भी हैं।
उनसे जीवन में बहार,अब भी हैं।
उनके हमारे बीच दूरी,अब भी हैं।
कुछ रिश्ते निभाने ज़रूरी,अब भी हैं।
उनकी पलकें झुकीं सी,अब भी हैं।
हमसे कुछ बेरुखी सी,अब भी हैं।
दिल का उनसे ही करार,अब भी है।
उनका हमपे इख्तियार,अब भी हैं।
उनकी फितरत में सब्र-ओ-करार,अब भी हैं।
जितने पहले थे,उतने हम बेकरार,अब भी हैं।
नीलम शर्मा