अब भीमराव न आएँगे.. कांशीराम न आएँगे…
हक़-अधिकारों को लड़े वो महामानव बाबा भीम थे,
जीना मुर्दों को सिखाया वो भी बाबा भीम थे ।
हर ज़ुल्म से हमें लड़ना सिखाया वो तो बाबा भीम थे,
अधिकारों को पाना सिखाया वो तो बाबा भीम थे ।।
कोई नहीं था जग में अपना, हम किसके गुण गाएँगे ।
चलो बहुजनों राह बुद्ध की, बुद्धमय देश बनाएंगे ।
बाबा साहेब न आएँगे…कांशीराम न आएँगे…
पढ़-लिखकर शिक्षित बन जाओ, अपने समाज को खुद आप जगाओ,
बुद्ध धर्म की दीक्षा लेकर, पंचशील के पांचों शील निभाओ ।
पाखंडवाद को छोड़के प्यारे, जीवन खुशहाल बनायेंगे ।।
बाबा साहेब न आएँगे….कांशीराम न आएँगे…
अपना सब कुछ त्याग भीम ने, ज़ुल्म और अत्याचार भगाया,
करके मंथन गहन भीम ने, भारत का संविधान बनाया ।
उसी राह पर चलकर फुले ने,शिक्षा का घर-घर दीप जलाया ।
माता रमा-सावित्री का हम कैसे कर्ज चुकायेंगे ।।
बाबा साहेब न आएँगे….कांशीराम न आयेंगे…
अत्याचारी बने दुशासन , फूलन ने उनको सबक सिखाया,
आत्मसमर्पण कर उसने जब संसद अपना पैर जमाया ।
उनको ये सब रास न आया, हमला कर फूलन को मरवाया,
फूलन-झलकारी तुम बन जाओगी, तब ये होश में आएंगे ।।
अब बाबा भीम न आएँगे…कांशीराम न आएँगे …
फ़िर एक मसीहा ऐसा आया, ख़ातिर समाज की घर -बार गँवाया,
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, साइकिल से भ्रमण जब वो कर आया ।
कांशीराम ने बाबा भीम का अधूरा सपना पूर्ण कराया ।
आज इन्हें तुम भूल बहुजनों , किसके गुण गाएँगे ।।
अब बाबा साहेब न आएँगे…कांशीराम न आएँगे…
“आघात” दर्द है तेरे सीने में, बहुजन आख़िर क्यूँ भूल रहा,
ख़ातिर समाज की मर-मिटने को, पेरियार की राह पर निकल पड़ा ।
मरते दम तक अहसान न भूलें, न गुण ग़ैरों के गाएँगे ।।
बाबा भीम न आएँगे….कांशीराम न आएँगे…