अब फकत तेरा सहारा न सहारा कोई।
अब फक़त तेरा सहारा, न सहारा कोई।
मुझको मिलता ही नहीं तुमसे अब प्यारा कोई।
वो मेरे हिज्र का मतलब भी समझ जाएगा।
उसको मिल जाएगा जब हिज्र का मारा कोई।
बिछड़ के इस तरह महसूस हुआ है मुझको।
टूटता आसमां से जैसे सितारा कोई।
जान से प्यारा है कैसे तुम्हें यह जानोगे।
तुमसे बिछड़ा जो नहीं जान से प्यारा कोई।
जबसे आंखों में बसा ली तेरी सूरत मैंने।
हमने रखा ही नहीं चेहरा दोबारा कोई।
तेरी आगोश में बैठा हूं सरे शाम कहीं।
कैसे हो सकता किसी का,हो तुम्हारा कोई।
कौन बांटे गा मेरे ग़म को,मेरी तनहाई।
“सगी़र” मिल जाए कहीं प्यार में हारा कोई।