अब पहले जैसा बसन्त कहां
अब पहले जैसा बसंत कहां
मात्रा बार १६
न तो अधरो़ पर मुरली सजे
वो पायल की झंकार कहां?
न तो अब ढोल ताशे बजते
वो टप्पोंके फनकार कहां?
न छांव में अब महफिल सजती
वो पींगों के हिलोरे कहां?
न चौगानों में पशु चराते
वह पनघट की कतारें कहां?
न डील डौल से तन युवक के
वो सुडोल सी गुलनार कहां?
न धोती कुर्ता साफा मूंछ
वोआंचल का घूंघटा कहां?
न पहले से परिधान रहे
न जंगल खेत खलिहान रहे
अब गीत संगीत उत्सव कहां?
अब पहले जैसा बसंत कहां?
ललिता कश्यप सायर
जिला बिलासपुर हि० प्र०