अब निर्माण करने दे
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मुहब्बते दौर मे ज़्ज़बाते दिल फितरत बनी मेरी।
तुम्हारे नाम को रोया, भुलाया फ़र्ज भी मैने।
सितम के और ज़फा का सिलसिला मैने बढ़ाया ख़ुद।
रहा मसरूफ़ कत्लेआम में शोहरत बढ़ाने को।
जो खञ्जर भोक कर खीचा तुम्हारी ओर ताका है।
बड़ी मग़रूर नजरों से, बड़प्पन के निगाहों से।
कटे जिस्मो का तोहफा ले तुम्हारे दर पे मैं आया।
भरे नजरों मे हसरत ले सिसक कर मुड़ गयी ज़ालिम।
“तुम्हारे मौत के फरमान पर है सिर मेरा हाजिर।
न छूना जिस्म मेरा पाक,इन नापाक हाथों से।“
हुआ हैरत,तो तेरे बीते दिन के आँख को झाँका।
घृणा का तैरता सैलाब था,पुरसोज़ आँखें थीं।
जिसे तारीफे लौ की झिलमिलाती रौशनी समझा।
उठे जो हाथ छूने जिस्म तेरा रूह गयी थर्रा।
गुनाहे खून से रँगे थे मेरे हाथ के नाखून।
गवारा है सभी इल्ज़ाम,सजाये मौत मुझको दो।
या पागल कुत्तों को ललकार मेरा ज़िस्म नुचवा दे।
तलाफ़ी करना किन्तु, चाहता दीने इलाही मैं।
मुझे अफ़सोस है करता रहा अबतक तबाही मैं।
तड़पते रूह के आँसू जिन्दगी में मेरे भरने दे।
भुलाने दे मुझे विध्वंस अब निर्माण करने दे।
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