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8 Jul 2023 · 1 min read

अब नहीं पाना तुम्हें

शेष न साहस तुम्हें अब खोने का
इसलिए ही अब नही पाना तुम्हें ।
दरमियां अब और दूरी आ न जाएं
इसलिए अब पास न आना हमे ।
है सुना कि जगत में सब कुछ क्षणिक
पाना खोना मन का केवल भ्रम ही है
किन्तु इस भ्रम में भ्रमरते ही सदा से
जाने कितनी बार जीकर मर चुकी मैं।
स्वप्न के सुन्दर महल मन ने रचे जो
जाने कितनी बार ढहते लख चुकी मैं ।
आघात सहते मन शिथिल ये हो चुका
मांगता है अब विदा देह द्वार से ।
किन्तु ये तन हो अकिंचन रिक्त भी
खोजता खुद को भटकता फिर रहा है। .

Language: Hindi
208 Views
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